Wednesday, April 9, 2014

काले की अब बारी है : रमेश चंदर शारदा मुख्य योग शिक्षक , पतंजलि योगपीठ हरद्वार.



                                            काले की अब बारी हे.


इस पावन भारत भूमि का,  हम पर यह कर्जा भारी हे         
गोरा अंग्रेज़   निकाला   था,  काले   की  अब बारी  है.

तूफानों से लाये जो कश्ती है, मझधार भंवर जा अटकी है ,
भगत सिहं, सुखदेव, गुरु की आत्मा  फिर  पुकारी  है,
इस  नोका को पार लगाने की , हम सब की जिम्मेदारी है,
गोरा   अंग्रेज़   निकाला   था,   काले   की   अब  बारी  है.

जहाँ ज़ुल्म का ताना-बाना है, लगे अपना ही देश वेगाना है,
कहने  को  आज़ादी  सारी  है,  पर जीना यहाँ  दुश्वारी है,
जहाँ बड़े बड़े भ्रष्टाचारी हैं,  हम  पर  यह कर्जा भारी है.
गोरा   अंग्रेज़   निकाला  था,   काले  की  अब  बारी  है.

जहाँ  जीवन  का  दस्तूर नहीं,  बहू बेटी महफूज़ नहीं,
जब बेटी बाहर जाती है, पर लौट के घर नहीं आती है,
उस माँ की हालत मत पूछो, तड़पे मछली बिन वारी है,
कौन इनकी करे रखबाली है, जहाँ गीद्ध तुल्य बलात्कारी है, 
जो शासन नें  चुप्पी धारी है,  हम पर यह कर्जा भारी  है,
गोरा   अंग्रेज़  निकला   था,  काले  की  अब  बारी है.

इक आग सी अंदर जलती है,  दशा देश की हम को डसती है,
नारी की न कोई हस्ती है, जहाँ दहशतगर्दों की मस्ती है,
बना देश  दबंग  धनवानों  का,  कोई मोल नहीं इंसानों का,
जो आंसू  पी कर  जीते  हैं,  नहीं सुनता कोई  सिसकारी  है,
गोरा   अंग्रेज़   निकला   था,   काले  की  अब  बारी   है.

जहाँ दूध की नदियाँ बहती थी, अब खून के  झरनें चलते हैं,
जहाँ  पीर-पगम्बर  रहते थे,  अब रावण कंस की धरती है,
यहाँ  साधू  पूजे  जाते थे,  अब  उन पर लाठी  चलती है,
यह दोष नहीं  दारिंदों का,  हुआ पाप का घड़ा  अब भारी है,
गोरा   अंग्रेज़   निकला   था,  काले  की  अब  बारी  है.

अब  भूखा भूख से  मरता है,  अनाज गोदाम में सड़ता है,
नहीं लेता कोई  जिम्मेदारी है,  जन्ता करती त्राहि त्राहि है,
अजव  तंत्र  यह  सरकारी है,  हम  पर  यह कर्जा  भारी,
गोरा   अंग्रेज़  निकला  था,   काले   की  अब  बारी  है.    


निर्बल  की जमीं ह्थ्याते हैं,  हक मांगें तो मार भगाते हैं.
कहीं  इनकी नहीं सुनवाई है,  रिश्वत की जहाँ वीमारी है,
यह कितनी बड़ी लाचारी है ,  हम पर यह  कर्जा भारी है,
गोरा   अंग्रेज़  निकला  था,  काले  की  अब  बारी  है.


                       
    इस पीठ के जो महामंत्री हैं,  आचार्य  बालक्रिशन  धनमन्त्री हैं,
                 जोड़ी बाल और राम की न्यारी है, इक मुरली तो दूजा मुरारी है,
                  जो पतंजली पीठ प्रभारी हैं, स्वामी रामदेव गिरधारी  हैं,
                 ये  दिव्य  पुरुष  अवतारी  हे, जन्ता इन पर तो बलिहारी है,
     जो  विपदा  हरे अब  हमारी  है,  और कर्जा न रहे जो भारी है.
                 गोरा   अंग्रेज़   निकाला   था,   काले   की  अब   बारी  है,

काला  धन  वापिस लाना है,   और भ्रष्टाचार मिटाना है,
व्यवस्था परिवर्तन लाना है, मंहगाई को जड़ से उठाना है,
                        सब को ही न्याय दिलाना है,  भारत स्वाभिमान जगाना है,
मिलजुल कर करनी तेयारी हे, भगानी ज़ुल्म की ठेकेदारी हे,
बेकारी ने चादर पसारी है, हम पर यह कर्जा भारी है,
गोरा   अंग्रेज़  निकला  था,    काले  की  अब  बारी  है.

इस पावन भारत भूमि का, हम पर यह कर्जा भारी हे         
गोरा  अंग्रेज़  निकला  था,  काले  की  अब बारी है.
                   *****
                  जय हिन्द    


































भारत की आज़ादी और स्वाभिमान : रमेश चंदर शारदा, प्रिंसिपल योग शिक्षक :

भारत की आज़ादी और स्वाभिमान   
                                      रमेश चंदर शारदा, प्रिंसिपल योग शिक्षक :         

परम पूज्य स्वामी रामदेव जी व आचार्य बालकृष्ण जी के चरणों में प्रणाम करते हुए मैं आप सभी भाई बहनों को नमन करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि अपने कीमती समय में से थोड़ा समय निकाल कर मेरी बात को सुनने का ( इस लेख को पढ़ने का) कष्ट करें.
 भईयो और बहनों, मैं कोई विशेष वक्ता या लेखिक नहीं हूँ, बस मन में एक  विचार आया और उस विचार को आप के साथ साँझा करना चाहता हूँ.
आज हमारा देश एक गंभीर परिस्थिती से गुजर रहा है. कुछ असामाजिक तत्वों की बजह से भ्रष्टाचार, वेरोजगारी, महगाई, असुरक्षा, चरित्रहीनता, यौन उत्पीड़न आदि के कारण हमारे भारत की समाजिक और प्रशासनिक व्यबस्था अस्त व्यस्त हो चुकी है और हम एक आजाद कहलाने वाले देश में गुलामों जैसा जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हैं.
अपने देश में आम आदमी को अपनी रोजी रोटी के लाले पड़े हुए हैं  उनकी तरफ किसी का कोइ ध्यान नहीं जाता परन्तु. जहाँ एक तरफ तो कुत्ता छत्तीस तरह के पकवान खा कर मखमली विस्तरों पर आराम फरमाता है और दूसरी तरफ लाखों टन अनाज गोदामों में सड़ रहा  है और एक ग्रीव इन्सान को सूकी रोटी और तन ढकने के लिय कपड़ा तक नसीव नहीं होता. कड़ाके की सर्दी में ठिठुर ठिठुर कर फुटपाथों पर असहाय दम तोड़ देता हैं. क्यों? इसलिय क्योंकि हम आज़ाद हैं? क्या इसी को आज़ादी कहते हैं? कितने श्रम की बात है.
       महिलायों की स्थिति ऐसी है कि उनको कदम कदम पर (गीद्ध जैसे) बलात्कारियों के भय के कारण थर-थर कांप कर पाँव रखना पड़ता है.  हम कब तक चुप रहेंगे? क्या मैं उस दिन का इंतजार करूं जिस दिन कोई दरिंदा आये और मेरी आँखों के सामने ही मेरी बहन या बेटी का मांस नोच कर बेखोफ उड़ जाये? 
  शिक्षा के क्षेत्र में स्कूलों ने एक ऐसे मंहगे बाज़ार का रूप धारण कर लिया है कि एक आम आदमी का बच्चा इन में झाँकने की हिम्मत तक नही कर सकता और उन में बह शिक्षा दी जा रही है जिस शिक्षा का जीवन में कोई अर्थ ही नहीं है. यही ही नहीं आज के शिक्षकों पर भी कई प्रकार के प्रश्न चिन्ह लगने लग गये हैं.
अन्य क्षेत्रों में भी बहुत सी भिन्नता देखने को मिलती है. क्या जीवन में सुखसुविधा के साधन कुछ विशेष वर्ग के लोगों तक ही सिमित होने चाहिय? यदि हाँ तो क्यों? अन्य लोग उन सुविधायों से बंचित क्यों रहें? क्या वे इस देश के वासी नहीं है? ये लोग कब अपने आप को आज़ाद महसूस करेंगे? ये सब कौन सोचेगा?
  एक गाँव का व्यक्ति यदि किसी भी विकसित शहर में रहनां चाहे तो आर्थिक असमानता, जातपात, ऊंच नीच आदि के भेदभाव के कारण बहां की सुखसुभिदायों का स्वपना तक नहीं ले सकता, और अपना सारा जीवन एक गन्दी बस्ती में ही व्यतीत करने के लिय मजबूर होगा. बह कब महसूस करेगा कि बह आज़ाद देश का वासी है?
इन कारणों की बजह से समाज में इतनी भिन्नता आ चुकी है कि एक व्यक्ति दूसरे के साथ बात तो क्या, आँख तक नहीं मिलाना चाहता.  राम, लक्ष्मण, भरत जैसे भाईयों का यह भारत देश जो सदभावना के लिए सारे विश्व में अपने आप में एक मिसाल था, उस देश में ऐसी हालत? क्यों? क्योंकि हम आज़ाद है. क्या इसी को आजादी कहते हैं?  यदि इसी को आज़ादी कहते हैं तो हमें नहीं चाहिय ऐसी आज़ादी. 
क्या हमारे देश के भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और चन्दरशेखर आजाद जैसे वीर सपूतों ने अपनी जान की कुर्वानी दे कर भारत देश को अंग्रजों के जालम शिकंजे से यह दिन देखने के लिए आज़ाद करवाया था? मुझे तो लगता है कि अँगरेज़ फिर से  हमारे देश में लौट आये हैं और जब तक इनका समाधान न किया गया तब तक देश की हालत बद से बत्तर होती जाएगी..
यदि स्वामी जी चरित्र व राष्ट्र निर्माण, स्वदेशी व्यवस्था का एक आदर्श व्यावहारिक स्वरूप, आर्थिक पार्दर्शिता, आध्यात्मिक न्यायवाद, काला धन वापिस लाने, भ्रष्टाचार मिटाने, मंहगाई, बेरोजगारी, गरीवी दूर करने की बात करके, इंसान को गंदी भूखों से छुटकारा दिलवा कर सही सोच का निर्माण कर के एक समानता और मानवता का बीज बो कर यदि वे देश को एक आर्धिक व आध्यात्मिक शकित सम्पन्न विश्व की महाशक्ति विश्वगुरु बनाना चाहते हैं तो उसमें किसी को क्या आपत्ति होनी चाहिए. बताईये?
       जब सब के पास सब कुछ होगा, सोच समान होगी, आपसी भाईचारा होगा , एक का दर्द दूर करने के लिय दूसरे की प्राथमिकता होगी तो स्वामी जी की छत्र छाया में रह कर उनके पद चिन्हों पर चलने में क्या हर्ज़ है.
 आयो स्वामी जी के स्बप्न को पूरा करनें के लिए हम सब एक जुट हो जाएँ और प्रतियेक भारतीय को एक आनन्दमय जीवन की अनुभूति करवाएं और फिर देखें कि कैसे नहीं शुरू होगा भारत से बासुदेवकुटुम्बकम के निर्माण की शुरुयात – ऐसा कुटुम्ब जिसमे सारा संसार एक व्यबस्थित परिवार की तरह रहे- और फिर देखिये कैसे नहीं बनता भारत देश फिर से विश्वगुरू और कैसे नही हासिल करता फिर से यह भारत देश अपना खोया हुआ स्वाभिमान?
  अवश्य ही करेगा. बस मात्र यह कि जो स्वामीजी आज कहते हैं उसे ध्यान से सुने और जैसे कहते हैं एकजुट हो कर बैसा करें.  समानता में रहने में क्या आपति है? 
तो भाईयो और बहनों,  उस आनन्द को हासिल करने के लिए जिस की स्वामीजी ने कल्पना की है हम सब को थोडा इंतजार करना होगा और परिस्थितिओं का डटकर मुकावला करके अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाना है.



क्या हम अपने लक्ष्य तक पहुंच पाएंगे? हाँ अवश्य ही पहुंचेंगे.
हौसला रख बोह मंजर भी  आएगा, प्यासे के पास चल कर समन्दर भी आएगा,
थक कर न बैठ एय मंजिल के मुसाफिर, मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मजा भी आएगा.
कब तक? हर पहलू की सीमा होती है. ज़ुल्म की भी सीमा है. गीता में एक श्लोक कहा गया है.
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत .
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम//४-८//
परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुस्क्रिताम.
धर्मस्थाप्नार्थाय सम्भवामि युगे युगे //४-८//

Whenever and wherever there is a decline in religious practice, O descendant of Bharata, and a predominant rise of irreligion—at that time I descend Myself."
"To deliver the pious and to annihilate the miscreants, as well as to re-establish the principles of religion, I Myself appear, millennium after millennium."
यदि इस श्लोक की तरफ ध्यान दिया जाए तो आप सोच रहे होंगे कि भगवान किस बात का इंतजार कर रहे हैं? क्या  अभी और ज़ुल्म होना वाकी है? नहीं अब तो ज़ुल्म की हद हो चुकी है. हर रोज़ कहीं न कहीं न जाने कितनी ही द्रोपदीयों का चीर हरण हो रहा है, धृतराष्ट्र तो होते ही अंधे हैं आज के जो दुसरे भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य आदि हैं वे भी उसी प्रकार आँखें मूँद कर बैठे हुए हैं;  लाखश्य गृहों की रचना हो रही है, ४ जून का कांड जो देहली में हुया था बह लाखश्यगृह की ही तो संरचना का उधारण है, चारों तरफ भ्रष्टाचार, आतंकवाद, गरीवी वेरोजगारी, आदि महामारी की तरह फ़ैल चुकी है. ऐसी परिस्थिति तो महाभारत के काल में भी नहीं हुयी थी. सब जगह जनता त्राहि त्राहि कर रही हैं.
भाईयो और बहनों चिंता मत करो परम पूज्य स्वामी रामदेव जी के रूप में भगवान कृष्ण का अवतार हो चूका है जिनके सामने अब युद्ध क्षेत्र में बह अर्जुन नहीं है. अब उस की जगह एक ऐसा अर्जुन कृष्ण के समक्षहै जिसके समक्ष युद्ध क्षेत्र में न तो कोई भीष्मपितामह, गुरु द्रोणाचार्य और सके सम्बन्धी आदि हैं जिन्हें देख कर बह अधीर हो जाये और आँखों में आंसू भर कर हाथ से अपना गाण्डीवं छोड़ दे और युद्ध से इंकार करदे.. बह तो युद्ध के लिए कब से अपने कमान पर तीर साधकर बैठा है इन भ्रष्टाचारी, बलात्कारी, आदि कौरवों को नेस्तो नवूज़ करने के लिय. उसके पास अब मतदातायों के रूप में ऐसी सेना है जो आने बाले चुनाव के रूप में जो महाभारत की दूसरी लड़ाई होने बाली है उस में अपने मत रूपी भालों और तीरों से लक्ष्य साध कर इन कौरवों की टू कर करके भारत की जन्ता व स्वामी रामदेव जी के सपनों को साकार कर देंगे.  एक बार मोदीजी को लाकर देख लेने में कोई आपति नहीं होनी चाहिय. 

अंत में हर प्रकार की गलती के लिए क्षमा याचना करते हुए मैं आप सब को नमन व धन्यबाद करता हूँ.
भारत माता की जय ....३  बन्दे मातरम ....३